अनंद एक गृहस्थ था, जिसके दो लड़के और एक लड़की थी। उसे अपनी संतान पर अभिमान था। उसकी पत्नी गायत्री एक भारतीय गृहिणी की सच्ची प्रतिनिधि थी। आनंद के मन में यह महत्वाकांक्षा थी कि वह अपने बच्चों को संपन्न बनावे और अपनी पुत्री का विवाह एक प्रतिष्ठित परिवार में करे। वह एक छोटे से रेस्तारां में काम करता था, जहाँ पर वह अपने सहयोगियों के बीच अपने उत्तम चरित्र तथा परोपकार पृवृत्ति के लिए विशेष रूप से आदर पाता रहा।
उसका विश्वास था कि कठिन परिश्रम और बुद्धिमत्ता ही सफलता की सीढ़ी है।
आनंद की अपनी जिं़दगी में सिर्फ़ एक ही शिकायत थी कि उसके पास पर्याप्त धन नहीं है। वह हमेशा यही सोचा करता था कि अगर उसके पास काफ़ी संपत्ति होती तो वह अपने बच्चों के लिए उनकी वांछित शिक्षा का ही प्रबंध नहीं करता बल्कि उनकी सभी प्रकार की जरूरतों की भी पूर्ति कर देता। अपनी इस इच्छा की पूर्ति के हेतु आनंद ने पहेलियों की प्रतियोगिता में भाग लेना प्रारंभ किया। वह निरंतर पहेलियाँ भरकर भेजा करता रहा, इस विश्वास से कि कभी न कभी वह अपने इस प्रयास में सफल होगा! वह अपने इन प्रयत्नों में एक बार अनुभव करता है कि एक भारी पुरस्कारवाली पहेली में भाग ले, लेकिन उसके लिए प्रवेश शुल्क की आवश्यकता थी। वह कई बार प्रयत्न करके भी प्रवेश शुल्क की राशि जुटा न पाया। अंत में उसने निश्चय कर लिया कि उसकी पत्नी जन्माष्टमी के दिन गरीबों को खिलाने के लिए जो पैसे हुंडी में डालकर सुरक्षित रख चुकी है, उस हुंडी को तोड़कर पैसे हड़प ले।
उस दिन रात को आनंद सो न पाया। रात भर वह बेचैन रहा। रात के अंतिम पहर में उसने भगवान कृष्ण की मूर्ति को देखा। वह आश्चर्य चकित था कि वास्तव में वह जो मूर्ति देख रहा है, वह सत्य है या उसकी कल्पना है! आखि़र भगवान कृष्ण और आनंद के बीच वार्तालाप होने लगा।
आनंद को लोगों ने बताया कि उसने हुंडी से जो धन चुराया है, उसे वसूल करने के लिए ही भगवान उसके सामने प्रत्यक्ष हुए हैं। आनंद ज़ोरदार शब्दों में तर्क करता है कि उसने जो कुछ किया है, वह सही है, अगर वह पुरस्कार पायेगा तो वह मूल धन के साथ ब्याज भी चुका देगा। आनंद का यह तर्क सुनकर भगवान कृष्ण मुस्कुरा उठते हैं और पूछते हैं कि अगर उसे मुँह माँगा धन दिया जाय तो वह क्या करेगा? आनंद इसका जवाब देता है कि धन के द्वारा इस दुनिया में सब कुछ ख़रीदा जा सकता है। यहाँ तक की यश, प्रतिष्ठा, पद, साथ ही भगवान को भी ख़रीदा जा सकता है। आनंद की ये बातें सुन भगवान कृष्ण मंदहास करके अदृश्य हो जाते हैं।
अंत में पुरस्कार की प्राप्ति से आनंद की सारी कामनाएँ यथार्थ रूप में सफल हो जाती है। वह प्रारंभ में एक मिठाई की दुकान खोल देता है, आखिर बढ़ते-बढ़ते वह फ़ाइव स्टार होटल का मालिक बनकर करोड़पति हो जाता है।
आनंद ने अपने बच्चों को सारी सुविधाएँ दीं, सुख के साधन जुटाये, पर अपार संपत्ति के होते हुए भी उसका मन अशांत था। आनंद ने काफी धन प्राप्त किया। ज़िंदगी में वह जो कुछ प्राप्त करना चाहता था, सब पाया, मगर यहीं से उसके जीवन में भारी समस्याएँ उत्पन्न हुई। यही संघर्षमय जीवन उनके चरित्र की चरमसीमा है! यही है ज़िंदगी !
(From the official press booklet)